मुझसे मिलने आज एक पहेली आई। कभी इठलाती, कभी छुपती दबे पैर आई। मुझसे मिलने आज एक पहेली आई।। उसकी दस्तक यों तो ख़ामोश थी, पर उसकी नजरें इल्जामों का सैलाब थी। भटकती कही दूर से पहुची वो मेरे पास, खुद से लड़ती, बेचैन सी आई। मुखसे मिलने आज रक पहेली आई।। खैर खबर पूछी मेरी, मुस्कुराई हर जवाब पर। मानो कुछ यकीन ना हो मेरे उस अंदाज पर। कुछ पल देखती मुझे फिर एक नया सवाल, उलझनों से बानी एक सौगात सी आई। मुझसे मिलने आज एक पहेली आई।। पूछा वजूद मेरा, मेरे होने का कारण मुझसे। हर रिश्ते का मतलब पुछा, क्या है मेरा नाता खुदसे! रूठी थी वो शायद मेरी किसी बात पर, मेरे ख्वाबों को पलकों से चुराने आई। मुझसे मिलने आज एक पहेली आई।। उसकी दस्तक मे छुपा हो एक राज गहरा। उन शब्दों का हो जैसे मुझपे सदियों से पहरा। मेरे हर जवाब पर भी सवाल कर उसने, मुझसे मेरी ही मुलाकात कराने आई। मुझसे मिलने आज एक पहली आई। हैरान थी मैं उसके हर इल्ज़ाम से। हर सवाल मानो बना हो मेरी ही परछाई से। मेरे आईने मे मेरी पुरानी तस्वीर बना कर, एक पहेली मुझे ख्यालों से जगाने आई। मुझसे मिलने आज एक पहेली आई। मुझसे मिलने आज एक पहेली आई। कभी इठलाती, कभी छुपती दबे पैर आई। मुझसे मिलने आज एक पहेली आई।। उसकी दस्तक यों तो ख़ामोश थी, पर उसकी नजरें इल्जामों का सैलाब थी। भटकती कही दूर से पहुची वो मेरे पास, खुद से लड़ती, बेचैन सी आई। मुखसे मिलने आज रक पहेली आई।।