1. फरीदा काले मैंडे कपड़े काला मैंण्डा वेस।। गुनहीँ भरिआ मै फिरां लोक केहेन दरवेश।। 2. दर्वेषां नु लोडीये रूखां दी जीरांद।। अर्थ:- बाबा फरीद जी मन को सम्बोधित हो कर कहते हैं हे फ़रीद तेरे मन रूपी कपड़े पर कालिख चड़ गयी है विकारों की और मन काला श्याह हो गया है जो के देखने में भी दृष्टि द्वारा नाक के उस point पर फ़ोकस करके दोनों आँखों से देख सकते हैं जहाँ से श्वास आ रहा है।। मैं तो अपने अंदर अनेकों विकारों को लिए घूम रहा हूं और लोक मुझे निराकार के दर पर मन के ध्यान द्वारा बैठने वाला दरवेश समझ रहे हैं।। 2. जो परमात्मा के दर पर मन के ध्यान द्वारा बैठने का चाव रखते हैं तो मिलन के लिये उन्हें वृक्षों जैसा ठहराव-धीरज रखने की जरूरत है।। क्योंकि जैसे वृक्ष अपने ऊपर सभी मौसम झेल कर अडोल खड़े रहते है वैसे ही धीरज की मन को जरूरत है।। ©Biikrmjet Sing #दरवेश