आज जिन्दगी मौत से बत्तर देखो हो चली नेह का चादर यहाँ जब अपनों नें ही खींच ली प्रेम मे खंजर यहाँ अब घात बनकर चली दोस्ती मे न जाने कब यहाँ अब दुश्मनी चली दोस्ती से बढ़कर यहाँ देखो अब दुश्मनी भली दुश्मनों से नहीं यहाँ अब दोस्ती से भय लगी क्या करूँ नेह की चादर यहाँ अब ढलने लगी सुकूँ मिलता नहीं अब यहाँ नेह ओझल होने लगी देखो जिन्दगी की बोली यहाँ अब लगने लगी श्यमशान मे मुर्दो के खाक पर सौदा होने लगी आज जिन्दगी मौत से बत्तर देखो हो चली अंधेरी रात मे ''आगाज'' अब दीपक बन जली कवि कमलेश मौर्या आगाज़