@SARGAM राम श्याम दो नाम हैं होते ऐसे व्यंग्य । मानों जग में हो रहा हरि का है सत्संग ।। राधेश्याम इक डोर है मोती और मलंग। रामचंद्र मर्यादा पुरुषोत्तम हैं जो रहते सदा सीता संग।। पात पालकी डोलते दोनो एसे संग। जैसे दूल्हा दुल्हन रहते विरह में संग संग ।। कौआ बैठा डाल पर नित करता काँव-काँव। कोयल कूं-कूं कर रही सावन में गली-गली हर गाँव ।। गुरू शिष्य क्या होत है जग में गुरु महान । गुरू शिक्षा देत है शिष्य बने विद्वान ।। देश का कैसा हाल है था ये कृषी प्रधान । कुछ नेता एसे हुए खा गये खेत खलिहान ।। हर विभाग अब बिक गये नेता हुए धनवान । बाते एसी कर रहे मानो बड़े महान ।। शिक्षा से मतलब नही धन से देते मोल । कालेज की कोई बात नही अब हो गये अनमोल ।। बुद्धिजीवियों की कमी नही करे भेड़िया सत्संग । सीताराम वो कर रहे कपटी सबके सबके संग ।। मानो विधायक विधाता बन गये एसा दृश्य विहंग। आपा भी सब खो चुके पैसे में इतना व्यंग्य ।। @SARGAM_SUBHASH_CHANDRA_BAGHEL NAIMISARNYA MISRIT TIRTH SITAPUR U.P. (+91 9455751412 , 8299012710) @SARGAM