जब रात अपने शबाब पर होती है तब आकाश में फैले नक्षत्र के बीच मुझे चंद्रमा श्वेत कमल की भांति खिला हुआ नजर आने लगता है।कई दफे एक नयी सहर की प्रतीक्षा करते हुए मेरे अंतर्मन को ये स्याह आसमां बहुत गहरा आघात पहुंचाने लगता है।हर रोज एक मीठी सहर की मेरी तमन्ना नीम सी कड़वाहट पर ख़तम होती है।इस कड़वाहट की समीक्षा करते हुए रात का एकांत मुझे पूरी तरह से जकड़ लेता है।आकाश नक्काशीदार जलद का भार मुझे सौंप कर सुकून की नींद सो जाता है। ये भार मेरे अंदर समाहित नहीं हो पा रहा है ना ही में इन्हे अपना पाती हूं।मेरी देह जलद के लिए नवीन है, वो पुरातन आसमां को नहीं भूल पा रहा है।मेरे मस्तिष्क के दोनों पटल मुझे एक दूसरे के विपरीत दिशा में खीचे जा रहे है। ऐसा लग रहा है मस्तिष्क के दोनों छोर मुझे रक्तरंजित करना चाहते है। रात सोने के लिए होती है लेकिन यदि रैना भीतर शोर मचाने लगे तब क्या किया जाए??शायद अंतर्मन को हरा कर नेत्रों से जल बरसा देना चाहिए। ©@deep_sunshine1210 #_writers_unplugged_ #दोस्तों… #ओपन_स्ट्रीट_एजुकेशन_क्लास #खयाला #SardarPatel