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जंग टलती रहे तो बेहतर है ( पूरी कविता अनुशीर्षक मे

जंग टलती रहे तो बेहतर है
( पूरी कविता अनुशीर्षक में पढ़ें) ऐ शरीफ़ इंसानो खून अपना हो या पराया हो,
नस्ल ए आदम का खून है आख़िर।
ज़ंग मगरिब में हो या मशरिक़ में 
अमन ए आलम का खून है आख़िर!
इसलिए ऐ शरीफ़ इंसानों जंग टलती रहे तो बेहतर है,
आप और हम,सभी के आंगन में शमां जलती रहे तो बेहतर है।
बम घरों पर गिरे या सरहद पर,
रूह ए तामीर जख्म खाती है,
जंग टलती रहे तो बेहतर है
( पूरी कविता अनुशीर्षक में पढ़ें) ऐ शरीफ़ इंसानो खून अपना हो या पराया हो,
नस्ल ए आदम का खून है आख़िर।
ज़ंग मगरिब में हो या मशरिक़ में 
अमन ए आलम का खून है आख़िर!
इसलिए ऐ शरीफ़ इंसानों जंग टलती रहे तो बेहतर है,
आप और हम,सभी के आंगन में शमां जलती रहे तो बेहतर है।
बम घरों पर गिरे या सरहद पर,
रूह ए तामीर जख्म खाती है,
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Shail..

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