कहानी -नए जूते पापा की चाय की दुकान थी। घर का बस गुजर -बसर ही होता था। वहाँ ख्वाहिशें कहाँ पूरी होती, जहाँ बस जरूरतों के लिए घर था। मैं घर की सबसे छोटी थी, तो प्यार भी कुछ ज्यादा ही मिलता था। मैं अपने भाई -बहनों के साथ ही स्कूल जाया करती थी। स्कूल के बाहर एक छोटी-सी बच्ची अपनी माँ के साथ बैठी भीख मांगा करती थी। आते-जाते मेरी नज़र उसपर पड़ ही जाती थी। वो कुछ 2-3 साल की ही होगी। एक दिन मैंने उसे रोते हुए देखा ,मैं उसके रोने का कारण जानने को उत्सुक थी। बड़े भाई ने जाकर पता किया, तो पता चला कि उसके पैरों में काँच चुभ गया है। ये सुनकर मैं कुछ सोचने लगी। शाम को मैंने अपने भाइयों को बताया कि मैं उसकी मदद करना चाहती हूँ। मेरे हाथों में गुल्लक थी। देखते ही देखते मैंने उसे ज़मीन पर फेंक दिया , और उन्हें इसका कारण बताया, क्योंकि सब मुझसे बहुत प्यार करते थे इसीलिए उन्होंने मुझे समझा। अब लगे सब पैसे गिनने। कुछ पैसे कम पड़ गए। मेरे भाई-बहनों ने भी अपनी -अपनी बचत से पैसे दिए। हम लेकर आए एक "नए जोड़ी जूते"। अगली सुबह हमने वो नए जूते उस बच्ची को दिए। उन्हें पहनकर वो बहुत खुश हुई। ये सब वाकया हमारी Principal ने देख लिया। हमारे पास आकर उन्होंने हमें शाबाशी दी और हमारे मम्मी -पापा ने भी। #एककहानी#नएजूते#बचपन #priyanka-pri