तुम्हारी शर्त पर जीने को ऐसे मजबूर हुए बिना मजदूरी काम करने वाले मजदूर हुए तुम्हारे किरदार पर शायरी सुना-सुना कर हम जितने बदनाम थे,आज उतने ही मशहूर हुए कहता था ना तकाज़ा सब वक़्त का है कल तुम मगरूर थे,आज हम मगरूर हुए होश में रहकर तुम्हे भूलना मुमकिन नही जब-जब तुम याद आयी भरपूर शुरूर हुए जिस्म के दूरियों के मायने क्या रहे हर ख्याल में तुम,तो कैसे दूर हुए कसूर ये था हमारा कि हमने इश्क़ किया लो आज से हम भी बेकसूर हुए कहा था ना बिछड़ कर दोबारा मत मिलना दिल,ख़्वाब,इरादे,हौसले सब चूर-चूर हुए ©क्षत्रियंकेश चूर-चूर!