मैं बाल्यकाल और यौवन में बंटती, और देह-काया की मारी युवती, समझ नहीं पा रही क्या है मेरी अभिलाषा, पल दो पल कोई साथ बैठा ले या मिटा दे पिपासा, मुझे कोई समझ नहीं पाया,कैसे सब को समझाती, आज जो भंवरे मुझ पे डोल रहे उनको दूं कैसे निराशा, यौवन की इस सीढ़ी पर पांव मेरे डोल रहे हैं, ना जाने मेरे अपने भला बुरा क्यों बोल रहे हैं। ©Harvinder Ahuja #असमंजस