झांकता हूं जिंदगी में तो कुछ पल याद आते हैं, मेरे जीवन के सुनहरें गुरू..नजर मुझे आते हैं। मेरी सुबह बनकर मुझे जागना वो सिखाते हैं, मेरी जिंदगी के पालने में बिस्तर वो बन जाते हैं। उंगली पकड़ कर चलना सिखाया मुझे जिसने, मेरे पिता जी ही मेरे पहले गुरू कहलाते है।। छोड़ जाते थे वो भी.. कभी कभी यूंही मुझे, वो कहानी भी अक्सर याद आ जाती है। मेरी मटमैली जिंदगी की कामयाबी के पीछे.. जो एक तस्वीर धुंधली सी नजर आती है।। मेरी हार को भी मेरी जीत में बदल गयी, मेरी प्यारी माँ मेरी दूसरी गुरू कहलाती है। भूल गर कोई हो जाये मुझसे जीवन में, कभी मार से तो कभी प्यार से समझाते हैं। खुद जल जाते है मुझे रोशनी देने के लिये, किताबों के साथ जीवन के पाठ पढ़ाते हैं। मेरा हौंसला भी वो और गुरूर भी वो, इस जहां में मेरे शिक्षक वो कहलाते हैं।। नादान बचपन में साथ वो भी चली है, कभी सहारा दिया मुझे कभी खुद संभली है। गम अगर मिला तो हँसकर भुला दिया 'दीपक' एक गुरू के रूप मे मुझे सच्ची जिंदगी भी मिली है।। शिक्षक दिवस पर अर्ज है कुछ पंक्तियां जो जिंदगी को कुछ यादों से रू-ब-रू कराती है..