ए इश्क तेरे नाज़ उठाके तड़पते हुए,बस तुझे देख हरहाल में मुस्कुराते रहे/१/
सारे परवाने शमा से ही लड़कर उड़ते हुए,बस उस जिंदादिल को जलाते रहे/२
कितने तूफ़ान हम चराग़ों से,देखते हुए,बस हयात को इश्क में आज़माते रहे/३/
चश्म से अश्क किसके लिए बहते हुए,बस बारहा जो पूछा*अख्तर को,तो सकुचाते रहे//४
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