उस शख्स से कब तक कोई राब्ता* रखे जो आपके साथ रहे पर फ़ासला रखे ऐसे दोस्त से दूर मुझे मेरा ख़ुदा रखे जो दिल में रश्क* और लब पे दुआ रखे मेरा दिल तोड़ने वाले , जा ख़ुदा तुझको भी किसी नाकाम मुहब्बत में मुब्तिला* रखे क्या करूं अब तब्सिरा* उसकी शर्मों हया पे जो जिस्म को नुमायाँ* और रुख़* पे पर्दा रखे क्या दरकार* उसे फिर किताबें और डिग्रियां जिंदगी की हर ऊंच नीच का जो तज़ुर्बा रखे दिल से दाद दे उस हरीफ़* की हिम्मत को हार के भी ललकारने का जो हौसला रखे क्यूं डरेंगे उस हाकिम* से फिर चोर और उच्चके जो उनकी हर लूट में अपना भी हिस्सा रखे किसी अपने की दी हुई हर चोट को आदमी दिल से बिल्कुल भुला दे, ज़हन में ताज़ा रखे कैसा रश्क " राज " किसी के ऊंचे मकाम पे उसमें ही सीख खुश रहना तुझे जहां ख़ुदा रखे ©J S T C rajinnder singh bagga #Rose