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कहाँ तक छुपाओगे, कब तक मारोगे, तुम अपनी हिम्मत को,

कहाँ तक छुपाओगे,
कब तक मारोगे,
तुम अपनी हिम्मत को,
जो देख के भी अनजान है,
सताये हुये समाज से,
ऊंचे पद पर आसिक्त 
समाज के ठेकेदारों, नेताओं
और दहशतगर्दों से,
आँखें मौन है पर अब
इकठ्ठा कर रहे हैं अपनी हिम्मत को,
जो बोलेंगी इक दिन,
पूछेंगी समाज से, नेताओं से,
और लड़ेंगी संकुचित विचारों से,
और मांगेंगी इक दिन,
अपना हक़, जीने का हक़ !! कहाँ तक छुपाओगे,
कब तक मारोगे,
तुम अपनी हिम्मत को,
जो देख के भी अनजान है,
सताये हुये समाज से,
ऊंचे पद पर आसिक्त 
समाज के ठेकेदारों, नेताओं
और दहशतगर्दों से,
कहाँ तक छुपाओगे,
कब तक मारोगे,
तुम अपनी हिम्मत को,
जो देख के भी अनजान है,
सताये हुये समाज से,
ऊंचे पद पर आसिक्त 
समाज के ठेकेदारों, नेताओं
और दहशतगर्दों से,
आँखें मौन है पर अब
इकठ्ठा कर रहे हैं अपनी हिम्मत को,
जो बोलेंगी इक दिन,
पूछेंगी समाज से, नेताओं से,
और लड़ेंगी संकुचित विचारों से,
और मांगेंगी इक दिन,
अपना हक़, जीने का हक़ !! कहाँ तक छुपाओगे,
कब तक मारोगे,
तुम अपनी हिम्मत को,
जो देख के भी अनजान है,
सताये हुये समाज से,
ऊंचे पद पर आसिक्त 
समाज के ठेकेदारों, नेताओं
और दहशतगर्दों से,