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सुनो ! जाते जाते नज़रे तो मिली थी न हमारी, अगर नज़रे

सुनो !
जाते जाते
नज़रे तो मिली थी न हमारी,
अगर नज़रे न मिलती ,
तो आज मैं आज़ाद होती ।
अपने सपने की तरफ बढ़ रही होती,
जी भर कर जी रही होती,
अपने मन की कर रही होती,
तुमने तो बांध दिया मुझे,
ईन चूड़ी, बिंदी और पायल से,
और फिर चैलेंज करते हो कि ,
मैं सब सम्भालकर कर लूँ पूरे सपने अपने,
वो भी बिना किसी सहारे के,
सोचा था कि अब हम दोनों सहारे होंगे एक दूसरे के,
लेकिन मुझे ये न पता था कि,
इस पंक्ति में हम दोनों तो रहेंगे ही,
लेकिन तुम इस कदर सहारे बनोगे की,
मुझे खुद को देखने तक का समय नही मिलेगा,
तो फिर मेरे सपने तो क्या ही देखु में,
ये नज़रे जब मिल रही थी न,
बहुत सी उम्मीदे दिल मे खिल रही थी,
नही पता था इस मन को,
की सब धरा का धरा रह जाना है,
मुझे तो सिर्फ केअर टेकर बनकर रह जाना है,
गुजार लेती हूँ चार लोगों के सामने,
तुम्हारे गुस्से पर हँसकर,
जानते हो तुम ,अंदर मेरे कितना डर और दर्द भरा,
शायद !तुम तो सिर्फ मेरे ऊपर की ये हँसी तक ही पहुँच पाते हो, 
पता नही कभी पहुँच पाओगे भी के नहीं ,
रोना रोक रोक कर थक गयी हूँ,
चार लोगों के सामने बखेड़ा खड़ा करने से अच्छा मुस्कुरा दो, अंदर से डरते रहो,
आने वाले समय के लिए तैयार रहो ,सिर्फ इतना शेष रहा हैं मेरे पास तो.....

©अर्पिता तुम और शेष.....
सुनो !
जाते जाते
नज़रे तो मिली थी न हमारी,
अगर नज़रे न मिलती ,
तो आज मैं आज़ाद होती ।
अपने सपने की तरफ बढ़ रही होती,
जी भर कर जी रही होती,
अपने मन की कर रही होती,
तुमने तो बांध दिया मुझे,
ईन चूड़ी, बिंदी और पायल से,
और फिर चैलेंज करते हो कि ,
मैं सब सम्भालकर कर लूँ पूरे सपने अपने,
वो भी बिना किसी सहारे के,
सोचा था कि अब हम दोनों सहारे होंगे एक दूसरे के,
लेकिन मुझे ये न पता था कि,
इस पंक्ति में हम दोनों तो रहेंगे ही,
लेकिन तुम इस कदर सहारे बनोगे की,
मुझे खुद को देखने तक का समय नही मिलेगा,
तो फिर मेरे सपने तो क्या ही देखु में,
ये नज़रे जब मिल रही थी न,
बहुत सी उम्मीदे दिल मे खिल रही थी,
नही पता था इस मन को,
की सब धरा का धरा रह जाना है,
मुझे तो सिर्फ केअर टेकर बनकर रह जाना है,
गुजार लेती हूँ चार लोगों के सामने,
तुम्हारे गुस्से पर हँसकर,
जानते हो तुम ,अंदर मेरे कितना डर और दर्द भरा,
शायद !तुम तो सिर्फ मेरे ऊपर की ये हँसी तक ही पहुँच पाते हो, 
पता नही कभी पहुँच पाओगे भी के नहीं ,
रोना रोक रोक कर थक गयी हूँ,
चार लोगों के सामने बखेड़ा खड़ा करने से अच्छा मुस्कुरा दो, अंदर से डरते रहो,
आने वाले समय के लिए तैयार रहो ,सिर्फ इतना शेष रहा हैं मेरे पास तो.....

©अर्पिता तुम और शेष.....