क्या बताऊँ??..मेरे मुल्क की क़ैफ़ियत तुम्हें "जो हमारा नहीं वह किसी का नहीं " ये नारा यहाँ के शाही लोगों के द्वारा कहे जाते हैं, एक तो कुर्सी संभाला नहीं जाता और बात करते हो राज-सत्तो की घूसखोरी से इनका मन नहीं भरता.. और ऊपर से चार दिन के निवाले तो..यूँही उनके छीन जाते है जो घर में सुबह दाल-रोटी की बात पर वादे करके निकले थे.. वे शाम होते ही खुद चार टुकड़ों में बंटे नज़र आते हैं, क्या बताऊँ??..मेरे मुल्क की क़ैफ़ियत तुम्हें "जो हमारा नहीं वह किसी का नहीं" ये नारा यहाँ के शाही लोगों के द्वारा कहें जाते हैं.. कहते तो सुना था कि..लड़कियाँ बोझ नहीं होती यहाँ तो बेशर्मो का बाजार है..जहाँ लोग खुद ही अपनी बेटियों की.. बोली लगाते नज़र आते, क्या बताऊँ??..मेरे मुल्क की क़ैफ़ियत तुम्हें "जो हमारा नहीं वह किसी का नहीं" ये नारा यहाँ के शाही लोगों के द्वारा कहें जाते हैं.. दो अक्षर पढ़ खुद को शहंशाह समझते हैं.. जिनके हाथों ने दिलाया..रोटी,कपड़ा ,व माकान उन्हें तो ये अंगूठा छाप पुकारते हैं, क्या बताऊँ??..मेरे मुल्क की क़ैफ़ियत तुम्हें "जो हमारा नहीं वह किसी का नहीं" ये नारा यहाँ के शाही लोगों के द्वारा कहें जाते हैं। _मेरी कलम हीमेरी आवाज है। मेरी ✍कलम ही मेरी आवाज है आजकी आवाज- "क्या बताऊँ मेरे मुल्क की क़ैफ़ियत तुम्हें.." #Corruption #feedom #sad_poetry #my_poem #my_poem_on_dark_minde✍✍✍