मे जो भी कहु उसके लिए हर एक नज्म कम है वो बहन है हर बात पहले ही समझ जाती है उसे ढंग की बात समझ नहीं आती पर वो हर बात मुझसे पहले समझ जाती है उसके नखरे अलग है वो रूठ के भी खुद ब खुद हँस जाती है वो हर बात मनाने को मुह फूला डाट खिला, जिद्दी कर,केसे भी हर एक बात मनवा लेती है मेरी चाहे गलती जेसी भी हो वो हर बार मेरे साथ खड़ी हो जाती है अब क्या कहु सब कम है उसके लिए हर एक नज्म कम है