में कैसे तुम्हे उसकी सिकायत करू वो तो मेरी अमानत नहीं में कैसे तुम्हे उसकी नाम बताऊं मुझे तो उसकी इजाज़त नहीं में तो बस पागल और गिरफ्तार था उसकी महोबत में मुझे तो उसने नफरत दे दिया मेरी जमानत में उस दिन के बाद तुम तो चली गई अपने राह में और में तो चला गया अपने राह में पर मुझे आज भी है विश्वास हम तो एक दिन जरूर मिलेगे एक दूसरे की बाहों में अब तो रोज मेरे केलेंडर के दिन बदल ते रहते है हम तो तुम्हारे इंतेज़ार में रोज गिरकर सभलते रहते है अब तो तुम चुपके से मेरे पास ऐसे आओ जैसे कोई देखें नहीं अब तो तुम मुझे अपने दिल की बात ऐसे बताओ जैसे कोई सुने नहीं जमानत