चल फिर से हम धूप सजाएँ चीनी के गुलदानों में क्यों सीलन का राज रहे मिट्टी से लिपे मकानों में आँगन में उम्मीद रंगोली बन कर झूमे फ़ाग खिड़की पर जब चूम हवाएँ बजे घंटियाँ राग थिरक पड़ें पर्दे शिद्दत से कलफ़ हुए जो तानों में चल फिर से हम धूप सजाएँ चीनी के गुलदानों में रेशम की एक डोर बाँध कर उड़ती पतंग उडारी है चर्खी पर लिपटी जो उलझन माँझे सी दो धारी है कुछ तो ऐसी इस्मत हो जो बिकती नहीं दुकानों में चल फिर से हम धूप सजाएँ चीनी के गुलदानों में रात अशर्फ़ी जुगनू की खन-खन से महके नूर और सहर की पेशानी पर रहमत लिखे ग़फ़ूर इत्र इबादत का मिश्री सा घुलता रहे जो कानों में चल फिर से हम धूप सजाएँ चीनी के गुलदानों में और रवां हो लहरों सा जब इश्क़ में डूबा फ़र्श हाथ थाम कर उसका झूमे महबूबों सा अर्श मरहम सी क़ामिल हो कहानी चढ़ी चाश्नी शानों में चल फिर से हम धूप सजाएँ चीनी के गुलदानों में क्यों सीलन का राज रहे मिट्टी से लिपे मकानों में चल फिर से हम धूप सजाएँ चीनी के गुलदानों में उदासियाँ ३ @ चल फिर से हम धूप सजाएँ ©Mo k sh K an #mokshkan #mikyupikyu #उदासियाँ_the_journey #Nojoto #Hindi