बहुत हो चुका अत्याचार बनती रही है लेखनी, तलवार मैं जलती मशाल बनाऊँगा जीतीं जंगें इसने कई मैं कहीं तो आग लगाऊँगा भस्म कर दूँगा जलाकर सारी मानसिकता संकीर्ण को फूँक दूँगा भेद - भाव को चेहरे विभत्स, वीदीर्ण को लेखनी मेरी शोणित से तर है नहीं किसी को तनिक ख़बर है मना लें खुशियाँ कुरीतियाँ फिर कहाँ आगे अवसर है? बस एक उबाल आया लोहू में और मैं ज्वाला धधका दूँगा मानवता के सारे शत्रुओं को खुरच - खुरच जला दूँगा लपटें जो हुई कम तनिक भी अंतिम कतरा तक दूँगा वार बहुत हो चुका परपीड़न बहुत हो चुका अत्याचार!! My writing is always intentional... #yqbaba #yqdidi #yqquotes