कैसी यह विपदा आई साथ मे मौतो का मंजर लाई काम न आयी हमारी कमाई प्रकृति की यह कैसी रीत है भाई। पेड़ो की हुई अंधाधुंध कटाई उसकी किमत अब समझ आई कैसी यह विपदा आई साथ मे मौतो का मंजर लाई खुद को प्रकृति से बड़ा समझा था भाई प्रकृति ने अपनी औकात बताई अभी भी वक़्त है,संभल जा मेरे भाई नही तो लड़नी पड़ेगी ओर लड़ाई कैसी यह विपदा आई साथ मे मौतो का मंजर लाई ©Kalpesh Joshi First poem by me #Rose