मैंने जो लिखा कभी गजल, वो इस्तेहार हो गए, तूने तोड़े वादे सारे, और ज़माने शूमार हो गए, अब तो रहते हो सुर्ख़ियों में, हमें तो तेरे दीदार हो गए, भीगती बारिश में तुम, दरिया में डूब जाती हो, मेरे लफ्ज़ उस दरिया में, डूबकर बेजार हो गए, न रही वो बात मुझमें, हम तो तेरे आँखों के, अब गुनहगार हो गए, मैंने जो लिखा कभी गज़ल, वो इस्तेहार हो गए।। ©Saurabh Singh मैंने जो लिखा कभी गजल, वो इस्तेहार हो गए, तूने तोड़े वादे सारे, और ज़माने शूमार हो गए, अब तो रहते हो सुर्ख़ियों में, हमें तो तेरे दीदार हो गए, भीगती बारिश में तुम, दरिया में डूब जाती हो,