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चार दिवस,, ​अध्याय यह,, ​नश्वर जीवन का,, ​ ​पहला द

चार दिवस,,
​अध्याय यह,,
​नश्वर जीवन का,,
​
​पहला दिवस-
​जीवन संकल्पना पूरित,,
​भौतिक वाद का,,
​
​द्वितीय दिवस- 
​भोग विलास,धन वैभव,,
​ प्रतिपूर्ति आचार विचार का,,
​
​तृतीय दिवस-
​चिंतन-मनन कर,,
​स्थिर मन कर्म वचन समभाव का,,
​
​चतुर्थ दिवस- 
​त्याग..अंधकार मोह-माया का,,
​छोड़ मृत्यु लोक,,
​आथित्य बन मृत्यु का..।। मनुष्य का यह नश्वर जीवन मात्र केवल जन्म पश्चात चार दिवस का ही है..

पहले दिवस मे मनुष्य भौतिकवादी हो अपनी इच्छा पूर्ति के लिए संकल्पित व प्रयासरत रहता है..।

द्वितीय दिवस मे वह उन्हीं वस्तुओं के संग भोग विलास, धन वैभव की प्रतिपूर्ति तथा उन्हीं के लिए अधीर रहता है..।

तृतीय दिवस मे जब उसे इन क्षणभंगुर  वस्तुओं की वास्तविकता का भान होता है तो वह आत्म चिंतन करते हुए मन को स्थिर रख कर्म और वचन मे समान भाव रखने का प्रयास करता है..।
चार दिवस,,
​अध्याय यह,,
​नश्वर जीवन का,,
​
​पहला दिवस-
​जीवन संकल्पना पूरित,,
​भौतिक वाद का,,
​
​द्वितीय दिवस- 
​भोग विलास,धन वैभव,,
​ प्रतिपूर्ति आचार विचार का,,
​
​तृतीय दिवस-
​चिंतन-मनन कर,,
​स्थिर मन कर्म वचन समभाव का,,
​
​चतुर्थ दिवस- 
​त्याग..अंधकार मोह-माया का,,
​छोड़ मृत्यु लोक,,
​आथित्य बन मृत्यु का..।। मनुष्य का यह नश्वर जीवन मात्र केवल जन्म पश्चात चार दिवस का ही है..

पहले दिवस मे मनुष्य भौतिकवादी हो अपनी इच्छा पूर्ति के लिए संकल्पित व प्रयासरत रहता है..।

द्वितीय दिवस मे वह उन्हीं वस्तुओं के संग भोग विलास, धन वैभव की प्रतिपूर्ति तथा उन्हीं के लिए अधीर रहता है..।

तृतीय दिवस मे जब उसे इन क्षणभंगुर  वस्तुओं की वास्तविकता का भान होता है तो वह आत्म चिंतन करते हुए मन को स्थिर रख कर्म और वचन मे समान भाव रखने का प्रयास करता है..।
akalfaaz9449

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