एक उम्र पार हुई ज़िन्दगी के साथ.. पक गये थे कुछ बाल, कभी-कभी कांपते थे हाथ..,, मैं सेहतमंद होने के लिये walk पर जाया करती थी, साड़ी में लिपटा होता था बदन, मैं सभ्यता में ही रहती थी.. फिर भी मैं नुक्कड़ , चौराहों के शह्ज़ादों को अखरती थी... वो रईसजादे थे.. नशे में चूर, बेहद मगरूर, शायद उनकी Aunty नहीं थी ..इसलिए वो मुझे घूर के देखते थे... मुझे खबर नहीं थी कि वो ढलती लौ से भी आंख सेंकते थे.. तृष्णा उनकी बढ़ चली थी.. एक रोज़ मैं सड़क पर अकेली थी.. पल भर में एक झटका लगा..होश आया तो बदन वह्शियों में अटका लगा... मर्यादा तार - तार हो चुकी थी, लज़्ज़ा भी शर्मशार हो चुकी थी... फिर नेता जी के बयान आते हैं... लड़के हैं.. गर्म खून है.. कभी कभी फ़िसल जाते हैं.. (#_Lengends Like Aunties ) I bycott this trend.. #_Lengends like Aunties