ख़ुदा बसता है जहां उसको मदीना कहते हैं मियां शौक से जीने को ही तो जीना कहते हैं उफ़ ये रूख़ पे जुल्फ़ों को बिखेरना फिर हटाना इन्हीं अदाओं को देख हम उन्हें हसीना कहते है ज़रूरी नहीं कि ये किस्ती मुझे पार उतार ही दे यहां हौसला-ए-मर्द को भी तो सफ़ीना कहते हैं तुम जो वफाओं के मुझे हज़ार कसमें देते हो जाने जां इसी को लहू-ए-ज़िग़र पीना कहते हैं आती होगी मियां आपके बदन से इत्र की महक मजदूर से जो आए उसे खुश्बू-ए-पसीना कहते है है अपना भी इक मुक़ाम "जय" दिल वालों में इश्क़ के जहां में मुझे छल्ला तुम्हें नगीना कहते है मृत्युंजय विश्वकर्मा ©mritunjay Vishwakarma "jaunpuri" लहू ए ज़िगर #ग़ज़ल #BestSher #gazal #mjaivishwa #Heartbeat