(•दास्तान•) चार दिन की ज़िंदगी है अपना निशान छोड़ जा जो दिल में दबी है दास्तान छोड़ जा क्यों गले मिलने की चाह को दबा के बैठा है पड़ाव पड़ चुके हैं, तीर और कमान छोड़ जा मीठे बोलों से कभी कम ना होगी तेरी शान मुस्कराहट ले के जा कड़वी ज़बान छोड़ जा बाँटने से दर्द कम होगा सभी कह गए प्यार कैसे हो दुगना ये इम्तिहान छोड़ जा चार दीवारों में रहने दो बस क़हक़हे जो भरा मायूसी से तू वो मकान छोड़ जा ज्ञान जितना हो तू उतना नम्र हो के दिखा उसे मुँह दिखाना है तू झूठी शान छोड़ जा ©Kushal #dastaan #Poetry #poem 💯💯💯💯🙏🙏🙏🌹🌹🌹💐💐💐💐💐💐🌺🌺🌺🌺🌺🌼🌼 दास्तान चार दिन की ज़िंदगी है अपना निशान छोड़ जा जो दिल में दबी है दास्तान छोड़ जा क्यों गले मिलने की चाह को दबा के बैठा है पड़ाव पड़ चुके हैं, तीर और कमान छोड़ जा