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असहज बातों को भी हम स्वीकारते हैं उतनी ही सहजता स

असहज बातों को भी
हम स्वीकारते हैं 
उतनी ही सहजता से 
जिस सहजता से 
सोखती है धरती
सूरज के ताप को।
नदियाँ जिस सहजता से
मिल जाती हैं सागर में
बिना कोई सवाल उठाए
समुद्र तल के अंधेरे में
सहजता से जैसे रहते
जीव ,जीवंत 
वैसे ही बस 
समाज,देश की व्यवस्था पर
असहज होकर भी हम 
रहते सहज
ऐसा ही होता है
ऐसा ही होगा
ऐसे ही चलेगा
कहकर
असहजता की गर्त को
सहज  मानकर
-©Anupama Jha


 असहज बातों को भी
हम स्वीकारते हैं 
उतनी ही सहजता से 
जिस सहजता से 
सोखती है धरती
सूरज के ताप को।
नदियाँ जिस सहजता से
मिल जाती हैं सागर में
असहज बातों को भी
हम स्वीकारते हैं 
उतनी ही सहजता से 
जिस सहजता से 
सोखती है धरती
सूरज के ताप को।
नदियाँ जिस सहजता से
मिल जाती हैं सागर में
बिना कोई सवाल उठाए
समुद्र तल के अंधेरे में
सहजता से जैसे रहते
जीव ,जीवंत 
वैसे ही बस 
समाज,देश की व्यवस्था पर
असहज होकर भी हम 
रहते सहज
ऐसा ही होता है
ऐसा ही होगा
ऐसे ही चलेगा
कहकर
असहजता की गर्त को
सहज  मानकर
-©Anupama Jha


 असहज बातों को भी
हम स्वीकारते हैं 
उतनी ही सहजता से 
जिस सहजता से 
सोखती है धरती
सूरज के ताप को।
नदियाँ जिस सहजता से
मिल जाती हैं सागर में
anupamajha9949

Anupama Jha

New Creator