असहज बातों को भी हम स्वीकारते हैं उतनी ही सहजता से जिस सहजता से सोखती है धरती सूरज के ताप को। नदियाँ जिस सहजता से मिल जाती हैं सागर में बिना कोई सवाल उठाए समुद्र तल के अंधेरे में सहजता से जैसे रहते जीव ,जीवंत वैसे ही बस समाज,देश की व्यवस्था पर असहज होकर भी हम रहते सहज ऐसा ही होता है ऐसा ही होगा ऐसे ही चलेगा कहकर असहजता की गर्त को सहज मानकर -©Anupama Jha असहज बातों को भी हम स्वीकारते हैं उतनी ही सहजता से जिस सहजता से सोखती है धरती सूरज के ताप को। नदियाँ जिस सहजता से मिल जाती हैं सागर में