अन्जान था इश्क़ की गलियों से मैं, वो बन के रहनुमा जिंदगी में आया फिजाएं महकी और सांसे कुछ बहकी सी इश्क़ की किताब का हर पाठ उसने पढ़ाया ज़िन्दगी कुछ भी नहीं मोहब्बत के बगैर ज़िन्दगी जीना उसने सिखलाया वक्त ने कुछ यो करवट बदली कि धुआँ धुआँ सा इश्क़ मेरा नजर आया नहीं खिल पाया प्रेम सुमन इस दूषित वातावरण में कुम्हलाया समाज के खोखले आडंबर रस्मो और रिवाजों मे समाज रिश्ते-नाते सब ने गला घोटा यो मोहब्बत का सांसे बंद सी हुई, अंखियों के सामने सामने धुआँ धुआँ सा छाया Challenge-146 #collabwithकोराकाग़ज़ 8 पंक्तियों में अपनी रचना लिखिए :) #धुआँधुआँसाइश्क़ #कोराकाग़ज़ #yqdidi #yqbaba #YourQuoteAndMine Collaborating with कोरा काग़ज़ ™️