बेपरवाह सी चलने लगी हैं साँसे ये मेरी, जिस दिन से हुई है मुक्कमल आशिकी ये मेरी, अब ऐसा क्या माँग लूँ तुझ से मेरे खुदा,बस ये बात ही मुझे समझ न आऐ, सहरा मे प्यासे भटकते माँगा था मिल जाऐ शाद्वल मुझे, पर बरसा के बारिश पूरी कर दी तुम नें मेरी मुराद सभी.... शाद्वल-oasis Pc-Pinterest