इतना खामोश होने को मन क्यों चाहता, बहुत दूर रवायतों से,जाने को मन क्यों चाहता, गलतियां इतनी होती जा रही, खुद से, जहन भी पोशीदा-सा क्यों होना चाहता। दो बूंद आंखों से हैं अश्क भी न निकलते, मेरी फ़रह को महशर-सा बना क्यों रखा । (फ़रह-खुशी,महशर-प्रलय) -sabeel ahmad #तन्हा_परिंदा #drd