#OpenPoetry कर सकते धारण जिसको, वो ही धर्म है समाहित गुण अंदर जो, वो ही धर्म है जैसे जल का बहना, सबकी प्यास बुझाना जैसे आग का जलना, ऊष्मप्रकाश को फैलाना जैसे हवा का चलना, जीवन की सांसो में बसना जैसे मिट्टी का होना , पुष्प वनस्पति का उगना लेखक का लिखना धर्म है, गायक का गाना धर्म है काम हैं अलग अलग हम इंसानो के जो, वो ही धर्म है समस्त पदार्थ निहित इस सुंदर प्रकृति में सभी का अपना अपना गुण जो, वो ही धर्म है हर प्राणी केवल अपने गुणों से है जाना जाता कर्म प्रधान जीव पदार्थ का जो , धर्म वही है माना जाता #openpoetry