ज़रा संभलकर चलो वक्त की दरकार है जरा सम्भल कर चलो इंसानियत है लहूलुहान, जरा सम्भल कर चलो बिक गया ईमान, जिस पर था सबको अभिमान चौकीदार, चोरों का है सरदार, जरा सम्भल कर चलो एक ही थी अवाज, बुलंदी पर थी जिसकी धार घात में बैठा था खरीदार, जरा सम्भल कर चलो शराब बंदी का है माहौल, विलायती की है बोल जनता मरने को परेशान?, ज़रा सम्भल कर चलो ना चलो फुट पाथ पर, ना जाने कब मौत गले पड़ जाए सफेदपोशों में गुनाह करने की है ललकार, जरा सम्भल कर चलो अच्छे दिन की चाहत में, आज का दिन भी गंवा बैठे तुम नोट, वोट, इलेक्शन की है भरमार, ज़रा सम्भल कर चलो सिलीन्डर का ना रहा अरमान, फांसी चढ़े किसान विकट समस्या किए है परेशान, जरा सम्भल कर चलो निराला वक़्त फिर लौटेगा, अपने विवेक को ज़रा खोलो रक्षक आज बन बैठा है भक्षक, जरा सम्भल कर चलो ©Sanjay Ni_ra_la #जरा सम्भल कर चलो