जो होठों तलक नहीं आये कभी वो बिसरे मुक्तक मुझे याद है अब भी इक अविश्रुत कहानी जहाँ जन्मी थी कभी वो गुलाबी मरघट मुझे याद है अब भी! जो पलकों से नहीं ढुलकाये कभी वो पनघटी जलकुभं मुझे याद है अब भी जो एकाकी मेरी धरा की न समझ पाये कभी वो मगरूरियती अंभ मुझे याद है अब भी! पता है ये सराहने वाले न चाहेंगे तुझे कभी ये मामूल दुनियावी मुझे याद है अब भी! अविश्रुत- गुमनाम मरघट - श्मशान घाट जलकुंभ - आँसू अंभ- आकाश मामूल - रीति-रिवाज, नियम #feelings #yqdidi #life #yqbaba #yq #zindagi #poetry #surajaaftabi