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विद्रोही अपने ही बन बैठे हैं अपनों की जान के दुश्म

विद्रोही अपने ही बन बैठे हैं अपनों की जान के दुश्मन ।
अँगुल भर जमीन के लिए भाइयों को लड़ते देखा है।।
आये दिन अमर्यादित हो जाती है जो ये मर्यादाओं की रेखा है।
आज कचड़े के ढ़ेर में किसी ने अपने एक अंश को फेका है।।
ये वो दौर है साब जहाँ इन्सानों में इंसानियत को मरते देखा है।
ब्रम्हांड में जो स्थान सब से सुरक्षित है।
माँ रूपी अभेद्य कवच से जो रक्षित है।।
आज उस रक्षण में भी 
एक अजन्मी बेटी को माँ के कोख़ में ही ख़ुद के बाप से डरते देखा है ।।
माँ के कोख़ में ही ख़ुद के बाप से डरते देखा है।।

#vद्रोही #NojotoQuote विद्रोही अपने ही बन बैठे हैं अपनों की जान के दुश्मन ।
अँगुल भर जमीन के लिए भाइयों को लड़ते देखा है।।
आये दिन अमर्यादित हो जाती है जो ये मर्यादाओं की रेखा है।
आज कचड़े के ढ़ेर में किसी ने अपने एक अंश को फेका है।।
ये वो दौर है साब जहाँ इन्सानों में इंसानियत को मरते देखा है।
ब्रम्हांड में जो स्थान सब से सुरक्षित है।
माँ रूपी अभेद्य कवच से जो रक्षित है।।
आज उस रक्षण में भी
विद्रोही अपने ही बन बैठे हैं अपनों की जान के दुश्मन ।
अँगुल भर जमीन के लिए भाइयों को लड़ते देखा है।।
आये दिन अमर्यादित हो जाती है जो ये मर्यादाओं की रेखा है।
आज कचड़े के ढ़ेर में किसी ने अपने एक अंश को फेका है।।
ये वो दौर है साब जहाँ इन्सानों में इंसानियत को मरते देखा है।
ब्रम्हांड में जो स्थान सब से सुरक्षित है।
माँ रूपी अभेद्य कवच से जो रक्षित है।।
आज उस रक्षण में भी 
एक अजन्मी बेटी को माँ के कोख़ में ही ख़ुद के बाप से डरते देखा है ।।
माँ के कोख़ में ही ख़ुद के बाप से डरते देखा है।।

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अँगुल भर जमीन के लिए भाइयों को लड़ते देखा है।।
आये दिन अमर्यादित हो जाती है जो ये मर्यादाओं की रेखा है।
आज कचड़े के ढ़ेर में किसी ने अपने एक अंश को फेका है।।
ये वो दौर है साब जहाँ इन्सानों में इंसानियत को मरते देखा है।
ब्रम्हांड में जो स्थान सब से सुरक्षित है।
माँ रूपी अभेद्य कवच से जो रक्षित है।।
आज उस रक्षण में भी