जनहित की रामायण - 43 खूब बजात है ताली, देख मदारी खेल ! सरपट दौड़ी जा रही, मन्मौजी की रेल !! बना बनाया बिगाड़ रहे, तैराकों को डुबा रहे ! जन जन को दे तड़पाहट, मखौल भी उड़ा रहे !! संकट में लघुउद्योग, झंझट में फुटकर व्यापार ! विशाल बहुराष्ट्रीयों को परोस दिया है बाजार !! औने पौने दाम पर, दिन रात बेचन की है होड़ ! उठती नज़र को ड़र है, आंख ही न दे ये फोड़ !! जनहित को इस कदर, किसी ने किया न नीलाम ! सारी समृद्धि समेट रहे, जन के हाथ न लगे छदाम !! जवान किसान जूझ रहे, मजदूर हो रहे मोहताज़ ! 'सत्ताधीश' शाही मौज़ में, कागजी रह गया जनराज !! हालात इस कदर बिगाड़े, सुधारने में लगेंगे दशक ! और समय दिया गया तो, भुगतेंगे हम सदियों तक !! -आवेश हिन्दुस्तानी 10.09.2021 ©Ashok Mangal #ganesha #JanhitKiRamayan #AaveshVaani #KhabronKiKhabar #kisaan