छाया दी जिसने अब वो शज़र टूट रहा है। हर ओर अपनेपन का असर टूट रहा है ।। विकास की इस दौड़ में मैं देख रहा हूँ। कैसे मेरी यादों का शहर टूट रहा है ।। - वैभव गुप्ता - developing Cities. Demolishing realtionships.