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ओ पिया,गुलबदन गुल-ए-रुख्सार सब खिल उठे इक तेरी खब

ओ पिया,गुलबदन गुल-ए-रुख्सार 
सब खिल उठे इक तेरी खबर के आने से,
पलकों पर बिछाए इश्क को 
हम तेरी राह हैं तकते,
अंदलीब-ए-चमन ने 
कब से नहीं सुनाई कोई धुन हमें,
वो भी बेज़ार थी 
जब से छोड़ा मेरे मकां का गुलशन तुमने,

दिर-ए-मुज़्तरीब को थोड़ा तो सुकूं दे दे
आ जाइए न,इससे पहले की 
मेरी दहलीज़ पर शाम अपनी दस्तक दे दे,
गिरफ़्तार होकर मेरी जुल्फों के साए में 
फिर अपनी हर शाम रूहानी कर दे, 
यह नज़्म नही है मामूली 
मेरी दिल की ख्वाहिश का समंदर है। अंदलीब-ए-चमन:- नाइटएंगल
दिर-ए-मुज़्तरीब:- बेचैन दिल


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ओ पिया,गुलबदन गुल-ए-रुख्सार 
सब खिल उठे इक तेरी खबर के आने से,
पलकों पर बिछाए इश्क को 
हम तेरी राह हैं तकते,
अंदलीब-ए-चमन ने 
कब से नहीं सुनाई कोई धुन हमें,
वो भी बेज़ार थी 
जब से छोड़ा मेरे मकां का गुलशन तुमने,

दिर-ए-मुज़्तरीब को थोड़ा तो सुकूं दे दे
आ जाइए न,इससे पहले की 
मेरी दहलीज़ पर शाम अपनी दस्तक दे दे,
गिरफ़्तार होकर मेरी जुल्फों के साए में 
फिर अपनी हर शाम रूहानी कर दे, 
यह नज़्म नही है मामूली 
मेरी दिल की ख्वाहिश का समंदर है। अंदलीब-ए-चमन:- नाइटएंगल
दिर-ए-मुज़्तरीब:- बेचैन दिल


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