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सद प्रवाह की अविरल धारा, करती अभिसिंचित जन जन को।

सद प्रवाह की अविरल धारा,
करती अभिसिंचित जन जन को।
संप्रभुताएँ कहती छू लो,
अब तुम निर्मल नील गगन को।।
तुम प्रचण्ड हो दहन सघन से
कभी नहीं घबराने वाले।
भारत माता कहती मेरे सुत अमृत
बरसाने वाले।। umakant Tiwari Prachand,

©उमाकान्त तिवारी "प्रचण्ड" Bharat Mata
सद प्रवाह की अविरल धारा,
करती अभिसिंचित जन जन को।
संप्रभुताएँ कहती छू लो,
अब तुम निर्मल नील गगन को।।
तुम प्रचण्ड हो दहन सघन से
कभी नहीं घबराने वाले।
भारत माता कहती मेरे सुत अमृत
बरसाने वाले।। umakant Tiwari Prachand,

©उमाकान्त तिवारी "प्रचण्ड" Bharat Mata