शिकायत है मुझे तुम से, एे पुरुष, हिफाज़त नहीं कर सकते हो, न ही हिफाज़त करना सिखा पाते हो, तो पैदाइश पे भी पहरे लगा दिए, कि तुम्हारी इज्ज़त पे कोई धब्बा न लगे। क्या कभी उन नज़रों को समझाया, जो कपड़ों के नीचे तक जाती है, और तुम कभी छोटे कपड़ों की दुहाई देते हो, तो कभी कोई और बहाना खोजते हो, खुद के अपराधों को छुपाने के लिए, कभी मोहब्बत का नाम देकर जिस्म को टटोलते हो, तो फिर स्त्री को ही चरित्रहीन कह देते हो, कभी वेश्यालयों तक पहुँचा देते हो, पता नहीं, उसके पैदा होते ही क्या दिख जाता है, और 80 साल की स्त्री भी माँ जैसी नहीं दिखती, कैसी ये हैवानियत है जो सोचने समझने की ताकत छीन लेती है। क्या तुमने कभी अपने ही वंश की नहीं सोची, और ऐसी लड़की का तो घर ही खत्म हो जाता है, गलती जो हर बार लड़की की मानी जाती है, वो चाहे अभी पैदा हुई या फिर मरने के करीब हो, जब ऐसे में भाई भी साथ छोड़ जाते हों, पिता भी मुँह फेर लेते हों, पति पहचानने से इन्कार कर दे, बेटे तो परम्परावश बिन बात के ही साथ छोड़ जाते हों, हर बार प्रमाण की अावश्यकता ही क्यों हो, अपनी हो कर भी कभी अपनी नहीं हो पाती, जो सबकी होते हुए भी हर बार परायी कर दी जाती है। शिकायत है मुझे तुम से, एे पुरुष, हिफाज़त नहीं कर सकते हो, न ही हिफाज़त करना सिखा पाते हो, तो पैदाइश पे भी पहरे लगा दिए, कि तुम्हारी इज्ज़त पे कोई धब्बा न लगे। शिकायत है मुझे तुम से, एे पुरुष, हिफाज़त नहीं कर सकते हो, न ही हिफाज़त करना सिखा पाते हो, तो पैदाइश पे भी पहरे लगा दिए, कि तुम्हारी इज्ज़त पे कोई धब्बा न लगे। क्या कभी उन नज़रों को समझाया, जो कपड़ों के नीचे तक जाती है,