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क्या खूब तरक्की की हमने, बिना चले कही भी चले जाते

क्या खूब तरक्की की हमने, बिना चले कही भी चले जाते हैं। न पड़ते हैं पैर जमी पे, एक छोर से दूजा छोर नाप आते हैं। गर्व है हमे अपनी बुद्धि का, क्या क्या करतप दिखलाते है। पर देखते हैं जब मुड़ कर पीछे, कोसो पीछे खुद को पाते हैं। आगे थे वो लोग जो मन की, गति को पाते थे। सोचने मात्र से ही खुद को उस जगह ही पाते थे।

©Lovely Love
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