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देश दुनिया की बात कहूं में , जात पात की बात कहूं म

देश दुनिया की बात कहूं में , जात पात की बात कहूं में।
कोई कहे हिन्दू कोई कहे मुस्लिम , कोई सिख ईसाई सहू में।।

बात बात पर दंगे होते ,धर्म के नाम से पंगे होते।
जनमानस कोहराम मचाते,धर्म अधर्म का युद्ध लड़ाते।।

ये देख प्रकृति घबराई, ये कैसी मुश्किल घर आई।
मैने तो मानवता बनाई ,मानव ने की अधर्म लड़ाई।।

प्रकृति को हुआ दुख भारी, क्यों मानव की अत्याचारी।
जीवन जीव की वस्तु सारी, प्रकृति से हर चीज हमारी।।

प्रकृति का अब गुस्सा भारी, खैर नहीं सुन अत्याचारी।
जीवन लूंगी बारी बारी, तब सुधरोगे नरसंहारी।।

अलग अलग तुम रहना चाहो, अपने अपने घर छुप जाओ।
प्रकृति की मार है ये , प्रकृति का अभिशाप है ये

अब मानवता में डर है भारी, ये कैसी मानस महामारी
प्रकृति से खिलवाड़ करोगे , तड़प तड़प घर जाय मरोगे

जो प्रकृति के नियम को तोड़े, अपनी किस्मत खुद ही फोड़े

*RJ Gumnam*
*Ravi Kumar Jha* * प्रकृति की मार *
देश दुनिया की बात कहूं में , जात पात की बात कहूं में।
कोई कहे हिन्दू कोई कहे मुस्लिम , कोई सिख ईसाई सहू में।।

बात बात पर दंगे होते ,धर्म के नाम से पंगे होते।
जनमानस कोहराम मचाते,धर्म अधर्म का युद्ध लड़ाते।।

ये देख प्रकृति घबराई, ये कैसी मुश्किल घर आई।
मैने तो मानवता बनाई ,मानव ने की अधर्म लड़ाई।।

प्रकृति को हुआ दुख भारी, क्यों मानव की अत्याचारी।
जीवन जीव की वस्तु सारी, प्रकृति से हर चीज हमारी।।

प्रकृति का अब गुस्सा भारी, खैर नहीं सुन अत्याचारी।
जीवन लूंगी बारी बारी, तब सुधरोगे नरसंहारी।।

अलग अलग तुम रहना चाहो, अपने अपने घर छुप जाओ।
प्रकृति की मार है ये , प्रकृति का अभिशाप है ये

अब मानवता में डर है भारी, ये कैसी मानस महामारी
प्रकृति से खिलवाड़ करोगे , तड़प तड़प घर जाय मरोगे

जो प्रकृति के नियम को तोड़े, अपनी किस्मत खुद ही फोड़े

*RJ Gumnam*
*Ravi Kumar Jha* * प्रकृति की मार *
rjgumnam6580

RJ Gumnam

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