मां माटी मानुष है अनवरत सिंचते सत्य समाज संस्कार है अविरल तन मन के गाय गंगा गांव है अटल धरती के उपजे आशा आयु उन्नति है जड़े इधर उधर से सब एक हैं साथ हैं नदियों की धाराओं से बंधे हैं विशाल वृक्ष की शाखा है मिट्टी में दीमक लगे तो फिर जड़े कहां हरे भरे हैं ठहरे हुए मौसम मानुष है रुका हुआ पानी सड़ा है पल-पल प्रकृति बदलता है बीती बातें आज बदलता है सच्ची अच्छी बातें कहावतें बनती हैं सर्वजन सुखाय सदा हिताय सोच काम आती है धन का बढ़ना ठीक मन का ना बढ़ना रीत फल फूलती है अमरता नहीं किसी को फिर भी अकाल जाना कहां भाती है आओ मिलकर रचे नया बगीचा जहां कोई पेड़ ना कटे हरा हरा सब एक हैं साथ हैं अमरबेल की तरह इंडिया वाले #इन्डियावाले