THE EXISTENCE मन तो बहुत अशांत है, पर शांत-सी वो हो गई| फैली जहां में आग है, है आग की चिंगारी वो| बुझा रहे चिंगारी को सब, नहीं आग पे किसी कीनजर| बहला दिया फुसला दिया, चिल्ला कर उसे दबा दिया| कुछ भी कहा कुछ भी किया, सब ने उसे सजा दिया| क्यों बोलती कुछ भी है वो,जब सुन नहीं कोई रहा| मिली सांत्वना हर मोड़ पर,सम्मान से वंचित रही| दिखी कमियां सबको मगर,न समझा न सराहा उसे| न उम्मीद रही न अस्तित्व वहां, जिस बाग को समझा जहां| थी फूल वो जिस डाल की, अब पेड़ भी वो न रहा| क्यों बिखेरते हो अब उसे, अवशेष भर अब वो रह गई| मन तो बहुत अशांत है, पर शांत-सी वो हो गई!! # मन तो बहुत अशांत है पर शांत-सी वो गई