यु ही नहीं मेरे रास्तों में नुकिले सूल (काटें) आये हैं शायद कुछ नफरत के बिज हम ही स्नेह के उस खाक़(मिट्टी) में भूल हैं ये बेजान से दिख रहें शाख़ गवाह है इसी एक बात का कि जहां मोहब्बत के छिटें पड़तें हैं वहां तो हमेशा कोमल फूल आये हैं ©★kkk यु ही नहीं मेरे रास्तों में नुकिले सूल (काटें) आये हैं शायद कुछ नफरत के बिज हम ही स्नेह के उस खाक़(मिट्टी) में भूल हैं ये बेजान से दिख रहें शाख़ गवाह है इसी एक बात का कि जहां मोहब्बत के छिटें पड़तें हैं वहां तो हमेशा कोमल फूल आये हैं #kkk