अकेले चलता रहा मजदुर की तरह मंजिल कब मिल गई पताभी नहीं चला कोशिश बहुत की नीचे गिराने की गिराता कैसा जमाना मुझ को जो माँ की दुआओ का काफला चलता रहा हसन मिर्ज़ा की कलम से ossam