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कितनी कहानियां चल रही हैं सड़कों पे कोई पैरों पे,

कितनी कहानियां चल रही हैं सड़कों पे कोई पैरों पे, कोई कंधों पे जा रहा है यहां

एक किनारा, एक रुख नज़रें हैं फिर भी कोई आ रहा है, कोई जा रहा है यहां

कोई झुक गया है दिन के बोझ तले और कोई शाम के इंतज़ार में मुस्कुरा रहा है यहां

कहीं पलकें हो गईं हैं भूरी धूल से कोई खा रहा है, कोई उड़ा रहा है यहां

इस गुमान में कि खो जाएंगे इस शोर में कोई रो रहा है, कोई गा रहा है यहां

सौदा खूब चल रहा है मंज़िलें बेचने का कोई पूछ रहा है, कोई पता बता रहा है यहां

कुछ लोग मुझे दिखते हैं तेज़ भागते कोई थामने, कोई दामन छुड़ा रहा है यहां।

©Ek dil ka ehsaas....
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please support zarur karen  Anshu writer Rakesh Srivastava gaTTubaba muskan Sethi Ji