रूठ गया जब मन का सपना, नींद ख़राब करूँ क्यों अपना, प्यास हृदय की मिट जायेगी, राम नाम की माला जपना, मुफ़्त मिले तो मूल्य न समझे, सुख पाने को पड़ता तपना, बुरा वक़्त पहचान कराये, कौन पराया कौन है अपना, कोई नहीं बचा है जग में, समय चक्र है सबका नपना, जगह दिलों में बने तो बेहतर, अख़बारों में क्योंकर छपना, सदुपयोग सीख ले 'गुंजन', पड़ता है सबको ही खपना, --शशि भूषण मिश्र 'गुंजन' चेन्नई तमिलनाडु ©Shashi Bhushan Mishra #रूठ गया जब#