देखो न कितना उलझ गए कगजो मे हम ऐसा क्या है इन कागजो मे जो उनसे गुफ्तगु करते हो खड़े है हम सामने फिर भी बात कागजो की ही करते हो।। वैसे मिले थे हम कुछ महीनो पहले जब छोटी मुलाकात मे लोगो की बात बन जाती थी।। जब नजर की एक नजर से कई दिनों की बात हो जाती थी भूल गए हो वो नजाकत या है कोई गम।। अब लोग भी बोलने लगे है बात सच थी या अफवाहों मे थे हम देखो न कितना उलझ गए कागजो मे हम. ... Tj... ©Ek Khayal सरकारी दफ्तर... #mybook