#2YearsOfNojoto बघेली कविता अस गुस्सा लागत ही जब मेहेरिए गुलती हैं मोबाइल। भूंख के मारे जिउ छटपटाए तऊ घिनही नहीं छोड़ती है मोबाइल। जबहिन देखए तबहिन उआ मोबाइल म बिजी रहए। खाना के नाम म आंखी काढंय धव कउने बात से चिढी रहए। अपना खाए खाए के मोटान रहए अ हमरे पीछे पड़ी रहय। सलगा दिन लय राशन पानी हमरे ऊपर चढ़ीं रहय। फरमांइस खातिर जानय हमहीं होइगा फेर बिहान। महेरिअन से भगवानव हांरे इआ जानय सारा जहान। ( राइटर सूरज दुबे ) हास्य कलाकार