कुछ वर्षो पहले ,एक पावन दिन था इस घर की देहलीज़ में किसी का आगमन था अपने रोने की आवाज से सबको अपना अस्तित्व बताया था मेरे अशांत मन को खुशियों से सजाया था भूक से जब तू चिल्लाई थी तो तुझे अपने सीने से लगाया था तेरी छोटी छोटी उंगलियों को पकड़कर मैंने ही तुझे चलना सिखाया था दुनिया के सारे कास्टो से बचके मैंने तुझे अपनी आँचल में छिपाया था ज़िन्दगी का चक्र कुछ यू घूमता चला तू कब बड़ी हुई पता ही नहीं चला फिर एक ऐसा समय आया था रोना तो बहुत चाहा लेकिन रोना नहीं आया था आंशुओ को मैंने अपनी आँखों में दबाया था क्युकी बेटी तेरी विदाई का समय आया था - Vijay Kumar Koli Maa Beti