जो पूरी कायनात लिए फिरते हो निगाहों में, तुम्हे क्या पता आसमां क्या है जमीं क्या है। जो यूँ बातें धीमे से करके , बदल देते हो मौसमो को, तुम्हे क्या पता सुश्क क्या है नमी क्या है। यूँ नज़रे उठा कर गिराया न करो हमनशी, के तुम्हे आशिकों की कमी क्या है। फिर क्यूँ बार बार चले आते हो लौट के तुम यूँ, के इश्क़ में बर्बाद होने को बचे सिर्फ हमीं क्या है। सुश्क= सूखा #हमनशी